Friday, June 23, 2023

आज अमेरिकी और Mexico से आये अथितियों को प्रीतम भरतवाण ज़ी का गीत "मोहना तेरी मुरली बाजी" गाया

आज अमेरिकी और mexico से आये अथितियों को प्रीतम भरतवाण ज़ी का गीत "मोहना तेरी मुरली बाजी" गाया.
छोटी सी कोशिश अपने कल्चर को दुनिया तक पहुंचाने के 🙏🏾
https://youtu.be/MzGIVJKxVDI
सुनाने के बाद सबको उत्तराखंडी गानों की लिस्ट भी दी
https://youtu.be/MzGIVJKxVDI
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Friday, July 24, 2020

सिसक सिसक, सुरक सुरक

💐सुरक सुरक💐

भागीरथी के बहाव को तु सुन रहा  सुरक सुरक💐
जानबूझकर मोन होकर तु देख रहा सुरक सुरक 💐

जन्म भुमि भी पहाड बनकर
रो रही थी सिशक शिसक💐
फिर भी तुझै दया न आई
देख रहा सुरक सुरक💐

माधोसिंह तीलु कुफु कि भुमि तूम देख रहे थे सुरक सुरक💐
फिर भी तुझे दया न आई
मोन बनकर देख रहा सुरक सुरक💐

विधाता कि नगरी कैसी विपदा मे आई💐
पहाड़ पुत्रो सच मे उन दुष्टो को शर्म नही आई💐

श्री देव सुमन तेरा हिमालय देख रहा सुरक सुरक💐
वह हिमालय भी विरह ब्यथा मै रो रहा सुरक सुरक💐

सावन के उगे फल फुलो से लदे पेड देख रहे थे सुरक सुरक💐
भुख तीस तेरी मिटाने मे हम भी विरह मे रो रहे थे शिशक शिशक💐

अन्न भुसा पिसा का़ंच मोन होकर दे रहे थे सुरक सुरक💐
वेशर्मी कि हदे पार कर वै
कर रहे थे खुसर फुसर💐

 युगो युगो से आज तक देव सुमन जन जन रो रहा शिशक शिशक
युगो युगो तक   देव सुमन सब जन मन बोल रहा नमन नमन 

25 जुलाई की वह सावन तिथी वीत रही थी  सुरक सुरक 💐
सावन कि  वह चांदनी रात्रि भी रो रहि थी शिशक शिशक💐
76 वे बलिदान दिवस पर श्रीदेव सुमन जी को शत शत नमन
आपणी या स्वरचित कविता कनी लगी अवश्य बतान👏👏
💐धुल की श्रद्धांजलि💐

Saturday, June 27, 2020

कृपया पोस्ट पूरी पढ़ें, बावन गढ़ का देश गढ़वाल उत्तराखंड

कृपया पोस्ट पूरी पढ़ें, बावन गढ़ का देश गढ़वाल

गढवाल को कभी 52 गढ़ों का देश कहा जाता था। असल में तब गढ़वाल में 52 राजाओं का आधिपत्य था। उनके अलग अलग राज्य थे और वे स्वतंत्र थे। इन 52 गढ़ों के अलावा भी कुछ छोटे छोटे गढ़ थे जो सरदार या थोकदारों (तत्कालीन पदवी) के अधीन थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इनमें से कुछ का जिक्र किया था। ह्वेनसांग छठी शताब्दी में भारत में आया था। इन राजाओं के बीच आपस में लड़ाई में चलती रहती थी। माना जाता है कि नौवीं शताब्दी लगभग 250 वर्षों तक इन गढ़ों की स्थिति बनी रही लेकिन बाद में इनके बीच आपसी लड़ाई का पवांर वंश के राजाओं ने लाभ उठाया और 15वीं सदी तक इन गढ़ों के राजा परास्त होकर पवांर वंश के अधीन हो गये। इसके लिये पवांर वंश के राजा अजयपाल सिंह जिम्मेदार थे जिन्होंने तमाम राजाओं को परास्त करके गढ़वाल का नक्शा एक कर दिया था। 
      गढ़वाल में वैसे आज भी इन गढ़ों का शान से जिक्र होता और संबंधित क्षेत्र के लोगों को उस गढ़ से जोड़ा जाता है। मैं बचपन से इन गढ़ों के आधार पर लोगों की पहचान सुनता आ रहा हूं। गढ़वाल के 52 गढ़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

पहला … नागपुर गढ़ : यह जौनपुर परगना में था। यहां नागदेवता का मंदिर है। यहां का अंतिम राजा भजन सिंह हुआ था।
दूसरा … कोल्ली गढ़ : यह बछवाण बिष्ट जाति के लोगों का गढ़ था।
तीसरा … रवाणगढ़ : यह बद्रीनाथ के मार्ग में पड़ता है और रवाणीजाति का होने के कारण इसका नाम रवाणगढ़ पड़ा।
चौथा … फल्याण गढ़ : यह फल्दकोट में था और फल्याण जाति के ब्राहमणों का गढ़ था। कहा जाता है कि यह गढ़ पहले किसी राजपूत जाति का था। उस जाति के शमशेर सिंह नामक व्यक्ति ने इसे ब्राह्मणों का दान कर दिया था।
पांचवां … वागर गढ़ : यह नागवंशी राणा जाति का गढ़ था। इतिहास के पन्नों पर झांकने पर पता चलता है कि एक बार घिरवाण खसिया जाति ने भी इस पर अधिकार जमाया था।
छठा … कुईली गढ़ : यह सजवाण जाति का गढ़ था जिसे जौरासी गढ़ भी कहते हैं।
सातवां … भरपूर गढ़ : यह भी सजवाण जाति का गढ़ था। यहां का अंतिम थोकदार यानि गढ़ का प्रमुख गोविंद सिंह सजवाण था।
आठवां … कुजणी गढ़ : सजवाण जाति से जुड़ा एक और गढ़ जहां का आखिरी थोकदार सुल्तान सिंह था।
नौवां … सिलगढ़ : यह भी सजवाण जाति का गढ़ था जिसका अंतिम राजा सवलसिंह था।
दसवां … मुंगरा गढ़ : रवाई स्थित यह गढ़ रावत जाति का था और यहां रौतेले रहते थे।
11वां … रैका गढ़ : यह रमोला जाति का गढ़ था।
12वां … मोल्या गढ़ : रमोली स्थित यह गढ़ भी रमोला जाति का था।
13वां … उपुगढ़ : उद्येपुर स्थित यह गढ़ चौहान जाति का था।
14वां … नालागढ़ : देहरादून जिले में था जिसे बाद में नालागढ़ी के नाम से जाना जाने लगा।
15वां … सांकरीगढ़ : रवाईं स्थित यह गढ़ राणा जाति का था।
16वां … रामी गढ़ : इसका संबंध शिमला से था और यह भी रावत जाति का गढ़ था।
17वां … बिराल्टा गढ़ : रावत जाति के इस गढ़ का अंतिम थोकदार भूपसिंह था। यह जौनपुर में था।
18वां … चांदपुर गढ़ : सूर्यवंशी राजा भानुप्रताप का यह गढ़ तैली चांदपुर में था। इस गढ़ को सबसे पहले पवांर वंश के राजा कनकपाल ने अपने अधिकार क्षेत्र में लिया था।
19वां … चौंडा गढ़ : चौंडाल जाति का यह गढ़ शीली चांदपुर में था।
20वां … तोप गढ़ : यह तोपाल जाति का था। इस वंश के तुलसिंह ने तोप बनायी थी और इसलिए इसे तोप गढ़ कहा जाने लगा था। तोपाल जाति का नाम भी इसी कारण पड़ा था।
21वां … राणी गढ़ : खासी जाति का यह गढ़ राणीगढ़ पट्टी में पड़ता था। इसकी स्थापना एक रानी ने की थी और इसलिए इसे राणी गढ़ कहा जाने लगा था।
22वां … श्रीगुरूगढ़ : सलाण स्थित यह गढ़ पडियार जाति का था। इन्हें अब परिहार कहा जाता है जो राजस्थान की प्रमुख जाति है। यहां का अंतिम राजा विनोद सिंह था।
23वां … बधाणगढ़ : बधाणी जाति का यह गढ़ पिंडर नदी के ऊपर स्थित था।
24वां … लोहबागढ़ : पहाड़ में नेगी सुनने में एक जाति लगती है लेकिन इसके कई रूप हैं। ऐसे ही लोहबाल नेगी जाति का संबंध लोहबागढ़ से था। इस गढ़ के दिलेवर सिंह और प्रमोद सिंह के बारे में कहा जाता था कि वे वीर और साहसी थे।
25वां … दशोलीगढ़ : दशोली स्थित इस गढ़ को मानवर नामक राजा ने प्रसिद्धि दिलायी थी।
26वां … कंडारागढ़ : कंडारी जाति का यह गढ़ उस समय के नागपुर परगने में थे। इस गढ़ का अंतिम राजा नरवीर सिंह था। वह पंवार राजा से पराजित हो गया था और हार के गम में मंदाकिनी नदी में डूब गया था।
27वां … धौनागढ़ : इडवालस्यू पट्टी में धौन्याल जाति का गढ़ था।
28वां … रतनगढ़ : कुंजणी में धमादा जाति का था। कुंजणी ब्रहमपुरी के ऊपर है।
29वां … एरासूगढ़ : यह गढ़ श्रीनगर के ऊपर था।
30वां … इडिया गढ़ : इडिया जाति का यह गढ़ रवाई बड़कोट में था। रूपचंद नाम के एक सरदार ने इस गढ़ को तहस नहस कर दिया था।
31वां … लंगूरगढ़ : लंगूरपट्टी स्थिति इस गढ़ में भैरों का प्रसिद्ध मंदिर है।
32वां … बाग गढ़ : नेगी जाति के बारे में पहले लिखा था। यह बागूणी नेगी जाति का गढ़ था जो गंगा सलाण में स्थित था। इस नेगी जाति को बागणी भी कहा जाता था।
33वां … गढ़कोट गढ़ : मल्ला ढांगू स्थित यह गढ़ बगड़वाल बिष्ट जाति का था। नेगी की तरह बिष्ट जाति के भी अलग अलग स्थानों के कारण भिन्न रूप हैं।
34वां … गड़तांग गढ़ : भोटिया जाति का यह गढ़ टकनौर में था लेकिन यह किस वंश का था इसकी जानकारी नहीं मिल पायी थी।
35वां … वनगढ़ गढ़ : अलकनंदा के दक्षिण में स्थित बनगढ़ में स्थित था यह गढ़।
36वां … भरदार गढ़ : यह वनगढ़ के करीब स्थित था।
37वां … चौंदकोट गढ़ : पौड़ी जिले के प्रसिद्ध गढ़ों में एक। यहां के लोगों को उनकी बुद्धिमत्ता और चतुराई के लिये जाना जाता था। चौंदकोट गढ़ के अवशेष चौबट्टाखाल के ऊपर पहाड़ी पर अब भी दिख जाएंगे।
38वां … नयाल गढ़ : कटुलस्यूं स्थित यह गढ़ नयाल जाति था जिसका अंतिम सरदार का नाम भग्गु था।
39वां … अजमीर गढ़ : यह पयाल जाति का था।
40वां … कांडा गढ़ : रावतस्यूं में था। रावत जाति का था।
41वां … सावलीगढ़ : यह सबली खाटली में था।
42वां … बदलपुर गढ़ : पौड़ी जिले के बदलपुर में था।
43वां … संगेलागढ़ : संगेला बिष्ट जाति का यह गढ़ यह नैल चामी में था।
44वां … गुजड़ूगढ़ : यह गुजड़ू परगने में था।
45वां … जौंटगढ़ : यह जौनपुर परगना में था।
46वां … देवलगढ़ : यह देवलगढ़ परगने में था। इसे देवलराजा ने बनाया था।
47वां … लोदगढ़ : यह लोदीजाति का था।
48वां … जौंलपुर गढ़
49वां … चम्पा गढ़
50वां … डोडराकांरा गढ़
51वां … भुवना गढ़
52वां … लोदन गढ़

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Friday, December 24, 2010

Garhwali Seekho | Learn Garhwali language and Everything about Uttarakhand | गढ़वाली सीखा

दैणा होयां खोली का गणेशा, दैणा होयां मोरी का नारैण !
दैणा होयां भूमि का भुम्याल, दैणा होयां पंचनाम देवता !!

सिमन्या, नमस्कार :)
सर्व प्रथम पितरों तै करीक स्मरण, ग्राम देवता कु करदू नमन.
सब्भु तै मेरु प्रणाम अर खासकर मेरा उत्तराखंडी, भैजी भुल्ला, नाता रिश्तेदार, गैल्या दगड़ी, दीदी भुली, बुड़ा बुडी, मामा मामी, काका काकी अर सगा संबंधियों तै मेरी सेवा सौई.

मैसणी बड़ी ख़ुशी छ कि मै अपड़ा उत्तराखंडी गैल्यो जूं सणी गढ़वाली बोलन नि औंद छ, त्यों कि खातिर "गढ़वाली सीखा" ब्लॉग द्वारा थोड़ा प्रयास करलू.
हम सब सणी अपड़ा गढ़वाल कि संस्कृति, सभ्यता, अपड़ी बोली अपड़ी भाषा का बारा मा जानकारी जरूर होण चैन्दी.

म्यार ब्लॉग बीटिं सिर्फ आप तै गढ़वाली ही सिखणक नि मिल्ली, यख आप तै म्यार प्यारा उत्तराखण्ड का बारा मा पूरी जानकारी, उत्तराखण्ड का गीत संगीत, सभ्यता अर संस्कृति, बोल चाल, घुमन फिरण  कि जगहों का बारा मा ढेर सारी जानकारी मिलली.

त आवा म्यार "गढ़वाली सीखा" ब्लॉग अर थोड़ा भौत लेखा पड़ी अपड़ा खून, अपड़ी धरती, अपड़ा पित्रू कि जनम भूमि कि खातिर भी कर ल्या.

आपकी जाग म आपकु
जय सिंह रावत
आप मेरा दगड़ फून बिटीं भी बात कर सकदन.
+91 8287455143